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Darbhanga: यहां आज भी जीवंत है गुरुकुल परंपरा, वेद की शिक्षा ले रहे भारत-नेपाल के 'बटुक'

 Gurukul Tradition निर्धन अभिभावकों के बच्चे यहां निशुल्क शिक्षा ग्रहण करते हैं। गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्र का नामांकन परिसर में ही चल रहे संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय में कराया जाता है। बटुकों को हिंदी अंग्रेजी पर्यावरण कंप्यूटर गणित जैसे अन्य विषयों की भी जानकारी दी जाती है।



HighLights

  • गुरुकुल में रहकर आधुनिक शिक्षा के साथ वेदों और मंत्रों के उच्चारण में पारंगत हो रहे बच्चे।
  • गुरुकुल का संचालन भिक्षाटन के साथ लोगों से प्राप्त दान से होता है.
अयमित कुमार, तारडीह (दरभंगा): दरभंगा जिले के तारडीह प्रखंड के लगमा गांव में आज भी गुरुकुल परंपरा जीवंत है। यहां बच्चे गुरुकुल में रहकर आधुनिक शिक्षा के साथ वेदों और मंत्रों के उच्चारण में पारंगत हो देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेवा दे रहे हैं।

चेहरे पर वेद का तेज झलकता है

संस्कृत में जब ये बच्चे वेदोच्चारण करते हैं तो सुनने वालों के शरीर में भी ऊर्जा पैदा हो जाती है। इनके चेहरे पर संस्कार और वेद का तेज साफ झलकता है। जगदीश नारायण ब्रह्मचर्य आश्रम में पड़ोसी देश नेपाल, उत्तर प्रदेश के साथ आसपास के लगभग डेढ़ सौ बटुक (सात से 12 साल के बालक) वेद कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

ब्रह्म मुहूर्त में स्वाध्याय के साथ स्नान, आरती, हवन, रुद्राभिषेक, जलपान, अध्ययन, भोजन एवं गौ सेवा के साथ वेद पाठ इनकी दिनचर्या में शामिल होती है। सुबह सात-आठ बजे से इनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। शाम में संध्या वंदन भी करते हैं। अभिभावकों की सहमति से गुरुकुल में बटुकों का नामांकन प्रक्रिया पूरी की जाती है। गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों से निर्धारित शुल्क 21 हजार रुपये एक बार लिया जाता है।



आचार्य तक शिक्षा के दौरान कोई अन्य शुल्क नहीं लिया जाता है। वैसे अभिभावक जो निर्धन हैं, उनके बच्चे यहां नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते हैं। गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्र का नामांकन परिसर में ही चल रहे संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय में कराया जाता है। वेद कर्मकांड के साथ बटुकों को आधुनिक शिक्षा पद्धति एनसीईआरटी की तर्ज पर हिंदी, अंग्रेजी, पर्यावरण, कंप्यूटर, गणित जैसे अन्य विषयों की भी जानकारी दी जाती है।

आश्रम का निर्माण 1963 में जगदीश नारायण ब्रह्मचर्य जी ने लगमा में श्मशान की एक एकड़ भूमि पर कराया था। 1968 में इसी नाम से संस्कृत महाविद्यालय को मान्यता मिली। बाद में इसी परिसर में जगदीश नारायण ब्रह्मचर्य आश्रम आदर्श संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई।


गुरुकुल का संचालन भिक्षाटन के साथ लोगों से प्राप्त दान से होता है। हालांकि कोरोना काल के बाद भिक्षाटन में परिवर्तन किया गया है। सप्ताह में एक दिन रविवार को बटुकों की टोली भिक्षाटन के लिए आसपास के गांव में निकलती है। साल में दो से तीन बार वार्षिक भिक्षाटन पर आश्रम के बटुक गुरुजी के साथ निकलते हैं। गेहूं और धान के साथ दलहन की फसल तैयार हो जाने पर टोली के रूप में बटुक आसपास के जिलों में जाकर दान प्राप्त करते हैं।


माथे पर तिलक लगाएं और कंधे पर भिक्षा की झोली लिए दरवाजे पर 'मां भिक्षाम देही' का स्वर सुनते ही महिलाएं हर्षित होकर बटुकों को दान देती हैं और बटुक बदले में द्वार पर स्वस्तिवाचन, शांति पाठ इत्यादि करते हैं। भिक्षाटन में द्रव्य, अन्न, वस्त्र, लकड़ी इत्यादि जो भी मिलता है बटुक उसे अपने साथ आश्रम पर लाते हैं। हालांकि अब आधुनिकता के दौर में आश्रम पर भी इसका रंग चढ़ने लगा है।

कुटिया की जगह बने कमरे

पूर्व में आश्रम में कुटिया हुआ करती थी लेकिन अब वर्तमान में कुटिया के स्थान पर कमरों की व्यवस्था हो गई है। गुरुकुल में जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा के सहयोग से दो कमरे के हालनुमा छात्रावास का निर्माण कराया गया है। साथ ही निजी तौर पर भी आश्रम में पांच कमरों का निर्माण करवाया गया है। वही लगमा ग्राम पंचायत की ओर से आश्रम में भव्य द्वार का निर्माण कराया गया है।


आश्रम परिसर में भव्य राम सीता मंदिर का निर्माण सामाजिक सहयोग से चल रहा है। लगमा ब्रह्मचर्य आश्रम के महंत बौआ भगवान कहते हैं कि आश्रम समाज को एक सभ्य नागरिक प्रदान करता है। यहां से निकले छात्र देश के कोने कोने में ईमानदारी से अपनी सेवा दे रहे हैं। गुरुकुल के माध्यम से संस्कृत और संस्कृति की रक्षा हो रही है।


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